Rahim Das ke dohe

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अगर आपको लेख पसंद आये तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर share करें। अब जानते हैं रहीम के 50 दोहे। 

रहीम दास कौन था? Who was Rahim Das?

रहीम दास, जिनको अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से भी जाना जाता है, 16 वीं शताब्दी के दौरान मुघल सम्राट अकबर के दरबार में एक कवि, दरबारी और सैन्य नेता थे। वह उस राज्य के एक महान जनरल और सलाहकार बैरम खान के पुत्र थे। उनका जन्म 1556 में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था।

रहीम दास एक विविध व्यक्तित्व के थे और उन्हें बहुत सी चीज की बारे में जानकारी थी कैसे प्रशासन, सैन्य रणनीति, कविता, आदि। वह फारसी और हिंदी दोनों में निपुण थे और महान संत एवं कवि शेख फरीद के छात्र थे।

रहीम दास को उनके दोहों के लिए जाना जाता है, जिन्हें रहीम के दोहे कहा जाता है। उनके दोहे, जो हिंदी और उर्दू में लिखे गए थे, भारतीय literature के उत्कृष्ट माने जाते हैं। इनको भारतीय स्कूल और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनके लेख अपनी सादगी, स्पष्टता और अनुग्रह के लिए जाने जाते हैं, और उनके दोहे अक्सर ज्ञान से भरे होते हैं और नैतिक मूल्यों और विचारों को सिखाते हैं।

अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा, रहीम दास ने अकबर के शासन में कई क्षेत्रों के गवर्नर के रूप में कार्य किया और सम्राट के एक विश्वसनीय सलाहकार थे। वह अपने सैन्य कौशल और रणनीतिक योजना के लिए प्रसिद्ध थे, और उन्होंने मुगल साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कुल मिलाकर, रहीम दास साहित्य, प्रशासन और सैन्य रणनीति में उनके योगदान के लिए जाने जाते थे। वह एक जटिल व्यक्ति थे और मुगल दरबार में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।

रहीम दास के दोहे | Rahim das ke dohe

1. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि हमें हमेशा अपने कार्यों को सोच समझकर करना चाहिए। हमें दूसरों से कैसा व्यवहार करना है, क्या बात करनी है और कैसे बोलना है इसका अनुमान पहले ही लगा लेना चाहिए क्योंकि ऐसा ना करने से अगर बात बिगड़ जाती है तो उसे लाख कोशिशों के बाद भी सुधारा नहीं जा सकता। इसकी तुलना दूध से की गई है, जब दूध फट जाता है तो कई कोशिशों के बाद भी उससे माखन नहीं बन सकता। इसलिए एक बार जो बता बिगड़ गई तो उसे बदलना बहुत मुश्किल हो सकता है या नामुमकिन हो सकता है।

2. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि प्रेम का धागा बहुत नाजुक होता है और उसे तोड़ना उचित नहीं। यह प्रेम का धागा हमारे सभी संबंधों का प्रतीक है जैसे माता, पिता, मित्र, सहपाठी, भाई, बहन, आदि। अगर यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो रिश्ते भी खत्म हो जाते हैं और दोबारा इनको जोड़ने का प्रयास करने पर एक गांठ बन जाती है वैसे ही जैसे दो धागों को जोड़ने पर एक गांठ बनती है। इसलिए हमें इन प्रेम के संबंधों को टूटने नहीं देना चाहिए।

3. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

Meaning: इन पंक्तियों से रहीम का तात्पर्य है कि किसी बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को कम नहीं आंकना चाहिए और उसे फेंकना नहीं चाहिए क्योंकि हर चीज का अपना महत्व होता है। वैसे ही जैसे तलवार लड़ने में काम आती है और सुई कपड़े सिलने में। तलवार चाहे कितनी भी बड़ी हो वह कपड़ों को नहीं सील सकती इसी तरह हमें भी हर चीज को महत्व देना चाहिए और उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए। 

4. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

Meaning: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति स्वभाव से अच्छा होता है उसपर बुरी संगति कोई प्रभाव नहीं डाल सकती। ठीक उसी प्रकार जैसे विषैली सांप कितना भी चंदन के वृक्ष पर लिपटा रहे, वृक्ष पर कोई फर्क नहीं पड़ता। 

5. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

Meaning: रहीम का कहना है कि यदि आपका कोई प्रिय रूठ जाता है तो उसे बार-बार मनाना चाहिए। चाहे वह सौ बार रूठे तो भी आपको मनाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जैसे एक व्यक्ति टूटी माला के मोतियों को बार बार जोड़कर बनाता रहता है उसी तरह रिश्तों को भी बार बार बनाने की कोशिश करनी चाहिए। 

6. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

Meaning: दोहे में रहीम बताते हैं कि बड़े को छोटा बोलने से वह छोटा नहीं हो जाता और उसका बड़प्पन कम नहीं होता उसी तरह जैसे गिरधर को मुरलीधर कहने से उनको दुख नहीं होता और उनकी महिमा में कोई घटी नहीं होती। 

7. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

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Meaning: इन पंक्तियों से रहीम दास का तात्पर्य है कि जो दुख-दर्द इस शरीर या देह पर आता है उसे सह लेना चाहिए। उसी तरह जैसे धरती पर सर्दी, गर्मी और बरसात होती है और धरती उन सब को सहती है। इसका मतलब है कि जैसे सर्दी, गर्मी और मीह धरती का हिस्सा है उसी तरह है दुख दर्द भी हमारे जीवन का हिस्सा है और शरीर पर आने वाले दुखों को हमें सहना चाहिए।

8. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।

Meaning: इस दोहे का अर्थ है, अगर कोई खीरा कड़वा होता है तो उसके सर को काटकर उसे घिसा जाता है और नमक लगाया जाता है उसी तरह जो व्यक्ति कड़वे मुंह वाला होता है या कटु शब्द बोलता है, उसे भी ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए।

9. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।

Meaning: इन पंक्तियों में कवि यह कहना चाहते हैं कि कौवा और कोयल दिखने में एक समान होते हैं, इसलिए उनमें अंतर निकालना मुश्किल होता है और पहचान नहीं की जा सकती। उन्हें तभी पहचाना जा सकता है जब वह बोलकर अपनी आवाज सुनाएं। यह चीज वर्षा ऋतु के समय स्पष्ट हो जाती है क्योंकि कोयल अपनी मधुर आवाज निकालती है और इससे उन दोनों के बीच का अंतर निकल जाता है।

10. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

Meaning: इस दोहे में रहीम का कहना है कि आंसू आंखों से निकलकर हमारे दिल के दर्द को प्रकट करते हैं। वह हमारे मन के दुख का प्रतिबिंब बन जाते हैं। जब किसी व्यक्ति को घर से निकाला जाता है तो वह इसी तरह घर के भेदों को दूसरा को बताता है।

11. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

Meaning: इस दोहे की व्याख्या है अपने मन में कितना भी बड़ा दुख क्यों ना हो उसे अपने मन में ही रखना चाहिए क्योंकि दूसरों को बताने से वह दुख कम नहीं होता। लोग दुख को सुनकर सिर्फ इठलाते और चोंचले करते हैं पर असल में कोई दुख में शामिल नहीं होना चाहता। लोग दिखाते हैं की वे हमारे साथ हैं लेकिन असलियत में वे सब नाटक करते हैं। इससे हमारा दुख और बढ़ता है।

12. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास कहते हैं कि वर्षा को देखकर रहीम और कोयल मौन धार लेते हैं। उस समय सिर्फ मेंढक ही बोलते हैं और सबको उनकी आवाज सुनाई देती है जिससे उन्हीं का बोलबाला हो जाता है। इन पंक्तियों में रहीम दास कहना चाहते हैं कि गुणवान व्यक्ति को कभी-कभी चुप रहना पड़ता है और गुणहीन व्यक्ति का ही प्रभुत्व चलता है।  

13. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

Meaning: इस दोहे में रहीम दास कहना चाहते हैं कि अगर जिंदगी में थोड़े दिन के विपदा आए तो वह भी भली होती है क्योंकि इस समय में हमें अपने हित अहित के बारे में पता लगता है और हमें ज्ञात हो जाता है कि कौन असल में हमारा बैरी है और कौन शुभचिंतक। ऐसे समय पर हमें लोगों के असली रंग के बारे में पता लगता है और जगत की परख हो जाती है।

14. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

Meaning: इस दोहे में रहीम का कहना की जो व्यक्ति दूसरों की मदद करता है उसे मदद करने का अहसास होता है और उसे भी खुशी मिलती है। जिसको वह मदद करता है उसे तो आराम मिलता ही है साथ ही उसके मन में खुशी उत्पन्न होती है और वह व्यक्ति धन्य होता है। ठीक उसी तरह जैसे एक महंदी लगाने वाले को मेंहदी घिसने पर और दूसरों को महंदी लगाने पर खुद के शरीर पर भी लग जाती है।

15. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।

Meaning: इन पंक्तियों से रहीम का तात्पर्य है कि हमें हमेशा दुख के समय पछताता नहीं रहना चाहिए क्योंकि वह समय हमेशा के लिए नहीं रहता। यह उसी प्रकार है जैसे वृक्ष पर कभी फल लगता है तो कभी वह झड़ जाता है, इसी प्रकार इंसान की जिंदगी में भी कभी दुख आता है और कभी सुख आता है। पर दुख से परेशान होकर अपने जिंदगी या किस्मत का पछतावा नहीं करना चाहिए।

16. ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास कहते हैं कि एक तुच्छ व्यक्ति से हमेशा दूर रहना चाहिए और उसकी बुरी संगति में नहीं पड़ना चाहिए। वैसे ही जैसे एक कोयला जब गर्म होता है तब शरीर को हानि पहुंचाता है और जब ठंडा हो जाता है तो भी शरीर को काला करता है। इसी तरह बुरी संगति वाले व्यक्ति के साथ रहने पर हमारी जिंदगी में भी कुकर्म भर जाते हैं और उसको छोड़ देने पर भी वे कुकर्म हमेशा बने रहते हैं।

17. वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

Meaning: रहीम दास इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि पेड़ कभी भी अपने फल को नहीं खाते और नदी कभी अपने जल को संचित नहीं करती। उसी प्रकार एक साधु कभी अपना ज्ञान अपने लिए काम नहीं लाता बल्कि परमात्मा के लिए अपने ज्ञान को उपयोग करता है। 

18. लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास जी विचार कर रहे हैं कि तलवार को कभी लोहे की या लोहार की नहीं कहा जाता बल्कि उससे उसका नाम लिया जाता है जो युद्ध के समय शत्रु के सर को धड़ से अलग कर देता है और अपनी वीरता दिखाता है। उसी वीर का नाम उस तलवार को दिया जाता है। अर्थात एक मनुष्य की पहचान उसके कुल या उसके जन्मदाता से नहीं होती बल्कि उसके कर्मों से होती है और वह कैसे समाज में पेश आता है, उससे होती है।   

19. तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।

Meaning: दोहे का अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति को कुछ चाहिए और वह उसे पाने की आशा रखता है तो उसी व्यक्ति से मांगना चाहिए जिसके पास वह चीज है। अगर दूसरे व्यक्ति के पास वह चीज है ही नहीं तो उससे नहीं मांगना चाहिए क्योंकि वह कभी नहीं दे पाएगा। उसी प्रकार जैसे अगर एक व्यक्ति को प्यास लगी है तो वह पानी पीने सूखे तालाब में नहीं जाएगा। 

20. माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।।

Meaning: इस दोहे में रहीम दास कहना चाहते हैं कि जैसे टेसू माघ के महीने में अपनी वृक्ष से अलग होकर इधर-उधर बिखरने लगता है और जैसे मछली जल से पृथ्वी पर आकर मर जाती है ठीक उसी तरह संसार में बाकी सारी चीज़ें जब अपने मूल्य या जड़ों से अलग हो जाती हैं तो उनकी दशा भी बदल जाती है।

21. रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

Meaning: इन पंक्तियों के द्वारा रहीम दास कहना चाहते हैं कि संगती का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव होता है और गुण हम में आ जाते हैं। पर कुछ चीजें ऐसी होती है जिन पर संगती का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जैसे जल में रखा पत्थर कभी नरम नहीं होता। उसपर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह पहले जैसा ही रहता है उसी प्रकार एक मूर्ख व्यक्ति को दिया ज्ञान भी व्यर्थ जाता है, उससे कुछ नहीं बदलता। उसकी सोच में कोई अंतर नहीं आता और कुछ नहीं सूझता।

Rahim ke dohe

22. संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।।

Meaning: इस दोहे का अर्थ है कि जैसे दिन के समय चंद्रमा आकाश में होते हुए भी नहीं दिखता और उसकी रौशनी आंखों तक नहीं पहुंचती परंतु अंधेरा होने पर ही वह दिखता है, उसी प्रकार एक व्यक्ति अपनी वृतियों या बुरी लतों से नियंत्रित होकर अपना सब कुछ खो बैठता है और संपत्ति गंवा देता है। उसका इस दुनिया में होना, ना के बराबर हो जाता है और वह किसी को नहीं दिखता क्योंकि उसकी कोई कीमत नहीं रहती। उसको लोग सिर्फ अंधेरे के समय यानी उसके बुरी आदतों के लिए ही जानते हैं।

23. साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।।

Meaning: रहीम दास जी दोहे में कहना चाहते हैं कि इस संसार में प्रशंसा कैसे कार की होती है। एक साधु सज्जन व्यक्ति की प्रशंसा करता है और उसका गुणगान करता है वैसे ही एक योगी योग की प्रशंसा करता है। वहीं दूसरी ओर एक वीर योद्धा जो साहस और प्राक्रम से जंग में लड़ता है, वहां उसके दुश्मन भी उसकी प्रशंसा करते हैं और इसी प्रशंसा को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

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24. वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।।

Meaning: इन पंक्तियों से रहीम दास का तात्पर्य है कि यह संसार दिखावे और छल से भरा हुआ है। अगर आप एक निर्धन व्यक्ति हैं तो आपको अपने बंधुओं के साथ रहना नहीं चाहिए क्योंकि इससे आपके मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा होगी और आप आगे बढ़ने की जगह अपने दोस्तों को नीचे गिराने का काम करेंगे। इसकी बजाय यह उचित होगा कि आप वन में जाकर सुकर्म करें और साधा जीवन जिएं चाहे आपको फलों का ही सेवन क्यों ना करना पड़े।

25. राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।।

Meaning: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि हमारे जीवन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता और जो होना होता है वह होकर रहता है। अगर कोई होनी या अनहोनी होती है तो वह होकर रहती है। उसी प्रकार जैसे राम को अगर रावण के बारे में पता होता तो वह हिरण के पीछे नहीं जाते। वे सीता के साथ ही रहते और उनका बचाव करते। हमें बस अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

26. रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।।

Meaning: इस दोहे में रहीम दास कहते हैं कि ऐसे व्यवहार की प्रशंसा की जानी चाहिए जो घड़े और इसी जैसी हो। क्योंकि घड़ा और रस्सी खुद जोखिम उठाते हैं ताकि दूसरों को पानी पिला सकें। कुएं में पानी भरते समय हमेशा डर रहता है कि रस्सी टूट सकती है या घड़ा फूट सकता है, उसके बावजूद वे दोनों दूसरों की मदद करते हैं और ऐसी मदद की प्रशंसा होनी चाहिए।

Rahim ke dohe ka arth

27. निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।

Meaning: इन पंक्तियों के माध्यम से रहीम दास कहना चाहते हैं कि कर्म हमारे हाथ में होता है लेकिन उसका फल हमारे हाथ में नहीं होता यानी हम अपने मन से और इच्छा से काम कर सकते हैं पर उस की सिद्धि हमारे हाथ में नहीं है। उसी तरह जैसे लूडो के खेल में पांसे अपने हाथ में होते हैं, उनको फेंकना भी हमारी मर्जी से होता है पर दांव क्या निकलेगा, वह हमारे हाथ में नहीं होता। इसलिए हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए और अच्छा कर्म करते रहना चाहिए। 

28. दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास का तात्पर्य है कि अपने जीवन में जब दुख आता है तो हर व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करता है और सुख की आशा रखता है पर कोई भी सुख के समय प्रभु का सिमरन नहीं करता और ना ही धन्यवाद करता है। अगर वह व्यक्ति सुख के समय में भी भगवान को याद करें और प्रार्थना में लगे रहे तो दुख आएगा ही नहीं। 

29. मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।

Meaning: इस दोहे के जरिए रहीम दास कहते हैं कि हमारा मन बहुत नाजुक और चंचल होता है और चीजों से प्रभावित हो जाता है एक बार वह फट जाए तो उसे अपनी पुनर स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता प्रोग्राम उसी तरह जैसे रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक सामान्य रूप में है, तब तक वे अच्छे लगते है। पर जब वे टूट जाए तो कितनी भी कोशिश कर लो वे फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते।

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30. रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।

Meaning: इस दोहे के जरिए रहीम दास समझाते हैं कि जो व्यक्ति अपने मन को केंद्रित करता है और उसपर नियंत्रण रखता है, वह ज़रूर सफल होता है। इसी तरह अगर कोई मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण अगर ईश्वर को चाहता है तो वह ईश्वर को भी पा सकता है और उन्हें भी वश में कर सकता है।

31. जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

Meaning: इन पंक्तियों में जल के प्रति मछली का प्रेम दिखाया गया है। मछली को जल से इतना लगाव होता है की वह उसे छोड़ नहीं पाती। जब एक मछुआरा जल में जाल डालता है और मछली पकड़ता है तो पानी जाल में से निकल आता है पर मछली पानी से लगी रहती है और उसके वियोग को सह नहीं पाती जिससे वह अंत में अपना प्राण दे देती है।

32. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिहैं देर।।

Meaning: इस दोहे में रहीम बताते हैं कि हमें बुरे समय में चिंता नहीं करना चाहिए और चुप होकर बैठना चाहिए। हमें बुरे समय में धैर्य रखना चाहिए और अच्छे दिनों का इंतजार करना चाहिए। अच्छे दिन आने पर सभी काम बन जाते हैं और हमें किसी भी चीज की चिंता नहीं करनी पड़ती। इसलिए हमें हमेशा अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए। 

33. वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।

Meaning: इन पंछियों के द्वारा रहीम दास जी सब को बताते हैं कि हमें हमेशा ऐसी वाणी और वचन बोलने चाहिए जिससे मन को शांति मिले और सबको अच्छा लगे। ऐसी वाणी दूसरों को तो सुख पहुंचाती ही है साथ ही हमारा मन भी खुश हो जाता है। 

34. जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

Meaning: इन पंक्तियों का अर्थ है कि हमें हमेशा गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए चाहे वह वित्तीय सहायता हो या शारीरिक सहायता हमें हमेशा उनके साथ हित का काम करना चाहिए। जिस तरह कृष्ण सुदामा की मदद करते हैं और उनके गरीब होते हुए भी उनका आदर सत्कार करते हैं इसी तरह हमें भी गरीब लोगों की सहायता करनी चाहिए। कर्षण की यह मदद देखकर सुदामा दंग रह जाता है क्योंकि उसको सोने का महल और सभी प्रकार की वस्तुएं मिल जाती हैं और फिर वह सोचता है की कृष्ण की मित्रता भी एक तरह की भक्ति है।

रहीम दास के दोहे

35. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

Meaning: इस दोहे के जरिए रहीम दास समझाना चाहते हैं कि जैसे पेड़ अपना फल नहीं कहता और तालाब अपना जल नहीं पीता उसी समान एक सज्जन व्यक्ति को अपनी संपत्ति सिर्फ निज काम के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के हित के लिए एकत्रित करनी चाहिए। एक भले मनुष्य को दूसरों की मदद करने के लिए अपनी संपत्ति संचित करनी चाहिए।

36. थोथे बाद क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।

Meaning: इस दोहे से रहीम दास का तात्पर्य है कि जैसे क्वारा (सितंबर) के महीने में आकाश में घने बादल रहते हैं पर वह गरजते रहते हैं और उनसे कोई बारिश नहीं होती उसी थकारे एक धनी व्यक्ति जब निर्धन हो जाता है तो वह है पिछली बातें करता रहता है। वह अपनी पिछली जिंदगी के गुण गाता है जिनका कोई मतलब नहीं रहता जैसे क्वार के महीने में बादलों के गरजने का कोई मतलब नहीं रहता।

37. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

Meaning: इन पंक्तियों के माध्यम से रहीम दास कहना चाहते हैं कि हमें एक समय पर एक ही काम करना चाहिए और उसको पूरा करना चाहिए। एक काम को करने से हमारे सारे काम बन जाते हैं पर अगर हम सारे कामों को एक साथ करने की कोशिश करते हैं तो हमारा कोई भी काम नहीं बन पाता। उसी तरह जैसे जब हम किसी पौधे की जड़ों की सिंचाई करते हैं तो पूरा पौधा फलता फूलता है और उसके सारे पत्ते, टहनियां, फूल, फल, बढ़ते जाते हैं। इसलिए हमें हमेशा एक ही कार्य पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

38. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

Meaning: इन पंक्तियों का अर्थ है कि कीचड़ का पानी धन्य होता है चाहे वह कितना भी गंदा क्यों ना हो पर छोटे कीड़े मकोड़े उस पानी को पीकर तृप्त हो जाते हैं और अपनी प्यास बुझा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर समुद्र में इतना जल होने के बावजूद उस पानी में से कोई नहीं पी सकता क्योंकि वह बहुत खारा होता है। इसी प्रकार एक निर्धन व्यक्ति धन्य होता है क्योंकि वह गरीब होकर भी दूसरों की सहायता करता है भाई एक अमीर व्यक्ति इतना धन पाकर भी दूसरों की सहायता नहीं करता। इसलिए एक निर्धन व्यक्ति आशीष पाता है।

39. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

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Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि बड़े होने का कोई फायदा नहीं है अगर वह काम ना आ सके। उसी तरह जैसे एक खजूर का पेड़ बहुत लंबा होता है पर ना वह किसी यात्री को छाया दे पाता है और ना ही उसके फल को कोई तोड़ कर आनंद ले पाता है क्योंकि उसका फल बहुत ऊंचे स्थान पर लगता है।

40. रहिमन निज संपति बिन, कोउ न बिपति सहाय
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

Meaning: रहीम इस दोहे में समझाते हैं कि जिस तरह कमल के फूल को पानी की बहुत जरूरत है और उसके बिना वह सूख जाता है। उस समय उसको सूरज नहीं बचा सकता सिर्फ पानी ही बचा सकता है हालाकि सूरज भी कमल को विकसित होने में मदद करता है क्योंकि एक फूल को धूप और पानी दोनों की ज़रूरत होती है। उसी प्रकार एक व्यक्ति के जीवन में संकट आने पर उसके सारे बंधू और रिश्तेदार उससे दूर भाग जाते हैं और कोई उसकी मदद नहीं करना चाहता। ऐसे समय में उसकी संपत्ति ही काम आती है और बिना संपत्ति के कोई काम नहीं आता। इसलिए अपनी मेहनत से बचाया हुआ पैसा ही हमारी मदद करता है।

41. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

इस दोहे में श्लेष अलंकार का उपयोग किया गया है जिसमें एक शब्द के एक से ज्यादा अर्थ निकलते हैं। इस दोहे में एक ही शब्द के 3 मतलब निकलते हैं। यह शब्द है पानी जो मनुष्य के लिए विनम्रता, मोती के लिए चमक और चून यानी आटे के लिए जल को दर्शाता है।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास समझाते हैं कि पानी हर चीज के लिए जरूरी है और बिना पानी के सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।

एक मनुष्य के जीवन में पानी विनम्रता को दर्शाता है। मनुष्य के लिए विनम्रता बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना जिंदगी व्यर्थ हो जाती है। 

इसी प्रकार एक मोटी के जीवन में चमक बहुत जरूरी है और इन पंक्तियों में पानी उस चमक को दर्शाता है जो मोती को कीमती बनाती है। इस चमक के बिना मोती व्यर्थ हो जाता है और उसकी कोई कीमत नहीं रहती।

इसी के समान पानी चून में जल को दर्शाता है। चून यानी आटे को गूंथने के लिए जल बहुत जरूरी होता है जिससे रोटी बनती है। अगर यह पानी ना हो तो रोटी नहीं बन सकती और आटा व्यर्थ हो जाता है, उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता।

42. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

Meaning: इस दोहे का अर्थ है कि जिस प्रकार भृगु ऋषि ने विष्णु की छाती पर पैर रखकर वार किया तो विष्णु क्रोधित न हुए, बल्कि उनसे पूछने लगे कि उनके पैरों में हानि तो नहीं पहुंची उसी प्रकार बड़े व्यक्तित्व वाले वाले मनुष्य को छोटों को क्षमा करना चाहिए। छोटों का काम होता है शरारतें करना पर बड़े लोगों को उसे माफ कर देना चाहिए। वह क्षमा करके छोटा नहीं बनता और उसके व्यतित्व में कमी नहीं आती। 

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43. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास बताते हैं कि एक दरिद्र व्यक्ति से कभी दोस्ती या दुश्मनी नहीं रखनी चाहिए। अगर आप उससे दोस्ती रखते हैं तो वह दुश्मनी निभाएगा और अगर दुश्मनी निभाते हैं तो वह किसी भी हद तक जा सकता है। यह उसी प्रकार है जैसे एक कुत्ते का काटना और काटना दोनों बुरा है। अगर कुत्ता काटता है तो हमें घाव होता है और दर्द होता है  वहीं अगर वह चाटता है तो हम अपवित्र होते हैं। इसलिए दोनों ही मामले बुरे हैं।

44. जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।

Meaning: इस दोहे से रहीम दास बताते हैं कि आग ऐसा स्वभाव दिखाती है कि एक बार जलने पर वह सुलगती है और बहुत तेज चलती है पर उसके बाद वह थोड़ी देर में बुझ जाती है। बुझने के बाद वह आग फिर से सुलग नहीं पाती। वहीं दूसरी ओर प्रेम की आग सामान्य आग से अलग होती है और वह कभी नहीं बुझती। वह लोग हमेशा सुलगती रहती है और अगर कभी बुझ भी जाए तो फिर से तेज जलने लगती है। इसकी आग में प्रेमी हमेशा जलते रहते हैं और कभी नहीं बुझते। 

45. धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।

Meaning: इस दोहे का तात्पर्य है कि हमें प्रेम मछली की तरह करना चाहिए जो पानी से इतना प्रेम रखती है कि उसके अलग होने पर तड़प तड़प के मर जाती है। वही एक भंवरा पहले किसी फूल करस लेता है और उससे प्रेम करता है फिर वह दूसरे फूल तरस लेता है और उससे प्रेम करता है। इससे वह दोनों फूल से छल का प्रेम करता है और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए छल करता है, वह स्वार्थी बन जाता है। ऐसे ही एक सच्चे भक्त को भी बिना स्वार्थ के प्रेम करना चाहिए उसे मछली की तरह अटूट स्नेह करना चाहिए। 

Rahim das dohe

46. सबको सब कोउ करै कै सलाम कै राम
हित रहीम तब जानिये जब अटकै कछु काम।।

Meaning: इसमें दोहे के माध्यम से रहीम दास बताना चाहते हैं कि हमारे अच्छे समय में हमें हर कोई सलाम करता है और राम का नाम लेता है। पर यह एक छल है क्योंकि संकट के समय कोई भी मदद नहीं करता। उस हमारे साथ कोई खड़ा नहीं होता और सलाम करने वाले सारे भाग जाते हैं। जो व्यक्ति संकट के समय अपनी क्षमता के अनुसार हमारी मदद करता है और हमारे बारे में पूछता है वही असली हितैषी होता है। 

47. रहिमन रिस को छाडि कै करो गरीबी भेस
मीठो बोलो नै चलो सबै तुम्हारो देस।।

Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि हमें अपना जीवन सादगी के साथ बिताना चाहिए और ऐसा भी रखना चाहिए जैसे एक गरीब व्यक्ति का हो। हमें नंबरी रहना चाहिए और दूसरों के साथ मीठा बोलना चाहिए जिससे सभी हमको पसंद करते हैं और हमारी संगति में चलते हैं। हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए। 

48. कहि रहीम या जगत तें प्रीति गई दै टेर
रहि रहीम नर नीच में स्वारथ स्वारथ टेर।।

Meaning: इन पंक्तियों के माध्यम से रहीम दास बताते हैं कि धरती और संसार में अब प्रेम खत्म हो चुका है और लोग एक दूसरे से प्रीति नहीं रखते। सभी लोग स्वार्थी हो गए हैं और अपने स्वार्थ के लिए प्रेम रखते हैं। जिसको अपना काम कराना होता है वह तभी बात करता है और पूरी दुनिया में से मानवता खत्म हो गई है।

49. अंतर दाव लगी रहै धुआन्न प्रगटै सोय
कै जिय जाने आपनो जा सिर बीती होय।।

Meaning: इस दोहे में रहीम समझाते हैं कि अंतर्मन लगी आग को कोई नहीं बुझा सकता और उसके धुए को कोई नहीं देख सकता क्योंकि वह मन में लगी है। उसे सिर्फ वही व्यक्ति जान सकता है जिसके साथ वह बीत रही है और उस आग की तड़पन वह अकेले ही अनुभव करता है। इसका संबंध एक प्रेमी से किया जा सकता है जिसके मन में प्रेम की आग है पर वह किसी को दिखती नहीं। उस आग को वह अकेले सहता है और सिर्फ वही उससे पीड़ित रहता है।

50. रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल
बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम कह रहे हैं कि प्रेम का मार्ग बहुत फिसलन भरा है। उसमें इतनी फिसलन है कि चींटी भी चल जाती है पर लोग बैल लादकर उस पर चलने की कोशिश करते हैं। पर उसके बावजूद भी वे फिसल जाते हैं। सिर्फ एक ही आदमी है जो इस रास्ते पर चल सकता है और प्रेम को पा सकता है, वह आदमी जिसमें छल कपट नहीं है। जिस व्यक्ति के अंदर अहंकार नहीं है वह प्रेम के विकट मार्ग पर भी चल सकता है।

51. रहिमन सो न कछु गनै जासों लागो नैन
सहि के सोच बेसाहियेा गयो हाथ को चैन।।

Meaning: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि एक व्यक्ति जिसे प्रेम हो गया है वह कहने समझाने से नहीं मानता चाहे उसे कितना भी मना लें। वह व्यक्ति अपना सारा सुख चैन खो देता है जैसे उसने बाजार में उन्हें बेच दिया हो और दुख को मोल ले लिया हो।

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Conclusion

मुझे उम्मीद है कि आपने Rahim ke dohe class 9, Rahim ke dohe class 7 को पढ़कर बहुत आनन्द लिया होगा।

आज हमने सीखा-

  1. Rahim das ke dohe
  2. rahim das ji ke dohe
  3. rahim ke dohe in hindi 

ऊपर लिखी शायरी के बारे में आपके क्या विचार हैं, उन्हें नीचे comment box में जरुर प्रकट करें। अगर आपका कोई सवाल है तो आप comment कर सकते हैं या email कर सकते हैं। आप हमें twitter, फेसबुक, instagram पर भी follow कर सकते हैं।

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मैं आपको जल्द से जल्द reply देने की कोशिश करूंगी। 

धन्यवाद……..।

Sant rahim das ke dohe पढ़ने के लिए शुक्रिया।


FAQ (Frequently Asked Questions)

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1. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

Meaning: इस दोहे की व्याख्या है अपने मन में कितना भी बड़ा दुख क्यों ना हो उसे अपने मन में ही रखना चाहिए क्योंकि दूसरों को बताने से वह दुख कम नहीं होता। लोग दुख को सुनकर सिर्फ इठलाते और चोंचले करते हैं पर असल में कोई दुख में शामिल नहीं होना चाहता। लोग दिखाते हैं की वे हमारे साथ हैं लेकिन असलियत में वे सब नाटक करते हैं। इससे हमारा दुख और बढ़ता है।

2. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि प्रेम का धागा बहुत नाजुक होता है और उसे तोड़ना उचित नहीं। यह प्रेम का धागा हमारे सभी संबंधों का प्रतीक है जैसे माता, पिता, मित्र, सहपाठी, भाई, बहन, आदि। अगर यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो रिश्ते भी खत्म हो जाते हैं और दोबारा इनको जोड़ने का प्रयास करने पर एक गांठ बन जाती है वैसे ही जैसे दो धागों को जोड़ने पर एक गांठ बनती है। इसलिए हमें इन प्रेम के संबंधों को टूटने नहीं देना चाहिए।

3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

Meaning: इन पंक्तियों के माध्यम से रहीम दास कहना चाहते हैं कि हमें एक समय पर एक ही काम करना चाहिए और उसको पूरा करना चाहिए। एक काम को करने से हमारे सारे काम बन जाते हैं पर अगर हम सारे कामों को एक साथ करने की कोशिश करते हैं तो हमारा कोई भी काम नहीं बन पाता। उसी तरह जैसे जब हम किसी पौधे की जड़ों की सिंचाई करते हैं तो पूरा पौधा फलता फूलता है और उसके सारे पत्ते, टहनियां, फूल, फल, बढ़ते जाते हैं। इसलिए हमें हमेशा एक ही कार्य पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

4. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

Meaning: इन पंक्तियों का अर्थ है कि कीचड़ का पानी धन्य होता है चाहे वह कितना भी गंदा क्यों ना हो पर छोटे कीड़े मकोड़े उस पानी को पीकर तृप्त हो जाते हैं और अपनी प्यास बुझा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर समुद्र में इतना जल होने के बावजूद उस पानी में से कोई नहीं पी सकता क्योंकि वह बहुत खारा होता है। इसी प्रकार एक निर्धन व्यक्ति धन्य होता है क्योंकि वह गरीब होकर भी दूसरों की सहायता करता है भाई एक अमीर व्यक्ति इतना धन पाकर भी दूसरों की सहायता नहीं करता। इसलिए एक निर्धन व्यक्ति आशीष पाता है।

5. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

Meaning: इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि हमें हमेशा अपने कार्यों को सोच समझकर करना चाहिए। हमें दूसरों से कैसा व्यवहार करना है, क्या बात करनी है और कैसे बोलना है इसका अनुमान पहले ही लगा लेना चाहिए क्योंकि ऐसा ना करने से अगर बात बिगड़ जाती है तो उसे लाख कोशिशों के बाद भी सुधारा नहीं जा सकता। इसकी तुलना दूध से की गई है, जब दूध फट जाता है तो कई कोशिशों के बाद भी उससे माखन नहीं बन सकता। इसलिए एक बार जो बता बिगड़ गई तो उसे बदलना बहुत मुश्किल हो सकता है या नामुमकिन हो सकता है।

6. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

Meaning: इन पंक्तियों से रहीम का तात्पर्य है कि किसी बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को कम नहीं आंकना चाहिए और उसे फेंकना नहीं चाहिए क्योंकि हर चीज का अपना महत्व होता है। वैसे ही जैसे तलवार लड़ने में काम आती है और सुई कपड़े सिलने में। तलवार चाहे कितनी भी बड़ी हो वह कपड़ों को नहीं सील सकती इसी तरह हमें भी हर चीज को महत्व देना चाहिए और उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए। 

7. रहिमन निज संपति बिन, कोउ न बिपति सहाय
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

Meaning: रहीम इस दोहे में समझाते हैं कि जिस तरह कमल के फूल को पानी की बहुत जरूरत है और उसके बिना वह सूख जाता है। उस समय उसको सूरज नहीं बचा सकता सिर्फ पानी ही बचा सकता है हालाकि सूरज भी कमल को विकसित होने में मदद करता है क्योंकि एक फूल को धूप और पानी दोनों की ज़रूरत होती है। उसी प्रकार एक व्यक्ति के जीवन में संकट आने पर उसके सारे बंधू और रिश्तेदार उससे दूर भाग जाते हैं और कोई उसकी मदद नहीं करना चाहता। ऐसे समय में उसकी संपत्ति ही काम आती है और बिना संपत्ति के कोई काम नहीं आता। इसलिए अपनी मेहनत से बचाया हुआ पैसा ही हमारी मदद करता है।

8. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

इस दोहे में श्लेष अलंकार का उपयोग किया गया है जिसमें एक शब्द के एक से ज्यादा अर्थ निकलते हैं। इस दोहे में एक ही शब्द के 3 मतलब निकलते हैं। यह शब्द है पानी जो मनुष्य के लिए विनम्रता, मोती के लिए चमक और चून यानी आटे के लिए जल को दर्शाता है।

Meaning: इन पंक्तियों में रहीम दास समझाते हैं कि पानी हर चीज के लिए जरूरी है और बिना पानी के सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।

एक मनुष्य के जीवन में पानी विनम्रता को दर्शाता है। मनुष्य के लिए विनम्रता बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना जिंदगी व्यर्थ हो जाती है। 

इसी प्रकार एक मोटी के जीवन में चमक बहुत जरूरी है और इन पंक्तियों में पानी उस चमक को दर्शाता है जो मोती को कीमती बनाती है। इस चमक के बिना मोती व्यर्थ हो जाता है और उसकी कोई कीमत नहीं रहती।

इसी के समान पानी चून में जल को दर्शाता है। चून यानी आटे को गूंथने के लिए जल बहुत जरूरी होता है जिससे रोटी बनती है। अगर यह पानी ना हो तो रोटी नहीं बन सकती और आटा व्यर्थ हो जाता है, उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता।

Rahim ke dohe class 7 | rahim ke dohe class 7 explanation

1. जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

Meaning: इन पंक्तियों में जल के प्रति मछली का प्रेम दिखाया गया है। मछली को जल से इतना लगाव होता है की वह उसे छोड़ नहीं पाती। जब एक मछुआरा जल में जाल डालता है और मछली पकड़ता है तो पानी जाल में से निकल आता है पर मछली पानी से लगी रहती है और उसके वियोग को सह नहीं पाती जिससे वह अंत में अपना प्राण दे देती है।

2. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

Meaning: इस दोहे के जरिए रहीम दास समझाना चाहते हैं कि जैसे पेड़ अपना फल नहीं कहता और तालाब अपना जल नहीं पीता उसी समान एक सज्जन व्यक्ति को अपनी संपत्ति सिर्फ निज काम के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के हित के लिए एकत्रित करनी चाहिए। एक भले मनुष्य को दूसरों की मदद करने के लिए अपनी संपत्ति संचित करनी चाहिए।

3. थोथे बाद क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।

Meaning: इस दोहे से रहीम दास का तात्पर्य है कि जैसे क्वारा (सितंबर) के महीने में आकाश में घने बादल रहते हैं पर वह गरजते रहते हैं और उनसे कोई बारिश नहीं होती उसी थकारे एक धनी व्यक्ति जब निर्धन हो जाता है तो वह है पिछली बातें करता रहता है। वह अपनी पिछली जिंदगी के गुण गाता है जिनका कोई मतलब नहीं रहता जैसे क्वार के महीने में बादलों के गरजने का कोई मतलब नहीं रहता।

4. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

Meaning: इन पंक्तियों से रहीम दास का तात्पर्य है कि जो दुख-दर्द इस शरीर या देह पर आता है उसे सह लेना चाहिए। उसी तरह जैसे धरती पर सर्दी, गर्मी और बरसात होती है और धरती उन सब को सहती है। इसका मतलब है कि जैसे सर्दी, गर्मी और मीह धरती का हिस्सा है उसी तरह है दुख दर्द भी हमारे जीवन का हिस्सा है और शरीर पर आने वाले दुखों को हमें सहना चाहिए।

रहीम ने अपने दोहे में बिना पानी सब व्यर्थ है ऐसा क्यों कहा अपने विचार लिखिए?

इन दोहे में रहीम दास समझाते हैं कि पानी हर चीज के लिए जरूरी है और बिना पानी के सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।

एक मनुष्य के जीवन में पानी विनम्रता को दर्शाता है। मनुष्य के लिए विनम्रता बहुत महत्वपूर्ण है और उसके बिना जिंदगी व्यर्थ हो जाती है। 

इसी प्रकार एक मोटी के जीवन में चमक बहुत जरूरी है और इन पंक्तियों में पानी उस चमक को दर्शाता है जो मोती को कीमती बनाती है। इस चमक के बिना मोती व्यर्थ हो जाता है और उसकी कोई कीमत नहीं रहती।

इसी के समान पानी चून में जल को दर्शाता है। चून यानी आटे को गूंथने के लिए जल बहुत जरूरी होता है जिससे रोटी बनती है। अगर यह पानी ना हो तो रोटी नहीं बन सकती और आटा व्यर्थ हो जाता है, उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता।

Sant rahim das ke dohe

1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

2. रहिमन निज संपति बिन, कोउ न बिपति सहाय
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

3. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

4. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

5. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।

6. जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।

7. धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।

कबीर रहीम के 5 दोहे? rahim das ke 5 dohe?

ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।

वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।। 

तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।

माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।।

रहीम के कौन से दोहे अधिक प्रसिद्ध है?

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।

वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।

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