इस शहर की तन्हाई भी कितनी अजीब है, लोग तो हजारों हैं लेकिन उसके जैसा कोई भी नहीं।
सब कुछ बदल जाता है तेरे ना होने से के लिए धूप भी दीवार पर पूरी तरह से नहीं उतरी।
अब दिल चला गया था तो कोई आंख भी ले जाता मेरी, कमबख्त यह एक ही तस्वीर कितनी बार देखो।
मुझे गौर से देखने के बाद तुम इतना तो जान जाओगे, कि तुम्हारे बिना हर लम्हा मेरी जान के पीछे पड़ा रहता है।
इधर कोई भी रफ़ीक़ नहीं रहबर और न कोई रहगुज़र, यह किस शहर में उड़ा कर लाई है हवा मुझको।
तुम जब भी आओगे मुझे खोया हुआ पाओगे, ख्वाबों के बिना मेरी तन्हाई में कुछ भी नहीं, मेरे इस छोटे से कमरे को तुम्हें सजाने की बहुत तमन्ना है, लेकिन मेरे कमरे के अंदर किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।
शायद यह भी मेरी जिंदगी की एक अदा है दोस्तों, उसको कोई और मिल लिया और मैं और तन्हा हो गया।
मुझको दरिया का सहारा लेना ही पड़ता है, मैं तो बस एकतरा हूं तनहाई तो वह भी नहीं सकती है
यह दुनिया बहुत कमाल का देती मुझे, तू तो कहता है कि वह तेरा है पर वह तेरे पास क्यों नहीं।
मेरी जिंदगी से तुम क्या गए वक्त का एहसास ही बदल गया, हम तो रातों को जागते रहे और दिन में सो गए, अब उनसे मुलाकातों के सिलसिले क्या बंद हो गया, मुद्दतें बीती हैं आईने से रूबरू हुए।
कुछ इस तरह से तन्हाई डसने लगी है मुझे, कि आज मैं अपने ही पैरों की आहट से डर गया