हाथों की लकीरों भी बड़ी अजीब पहेलियां हैं हर एक सफर लिखा है इनमें बस हमसफर नहीं लिखा

हम इस तरह डूबे कि समंदर को भी हैरत हो गई यह शख्स कितना अजीब है किसी को पुकारता ही नहीं

अपने दर्द को किसी के सामने बयां न करूंगा जब हर दर्द मुझे ही सहना है तो तमाशा क्यों करना

गुज़रे वक्त की यादें अब तो सज़ाएं बन चुकी हैं ना जाने हर कोई मतलब के लिए क्यों मेहरबान होता है

लोग हमें टूटा हुआ देखने का इंतजार कर रहे थे और हम ऐसे बन गए सहते- सहते कि पत्थर भी जल जाए

ए खुशी थोड़ी सी मेहरबान मुझ पर भी हो जा, अब थक चुका हूँ हंसी की आड़ में गम छुपाते- छुपाते

अब नहीं जीना मुझे उन झूठे अपनों के मेले में खुश रहने की ही कोशिश कर लूंगा अकेले में

यारों संभाल कर रखना अपनी पीठ को शाबाशी और खंजर हमेशा पीठ पीछे ही मिलते हैं

उसके बगैर भी यहाँ चलता रहेगा एक तारा टूट जाने से सारा आसमान खराब नहीं होता

यह भी बहुत अच्छी बात है कि हम हर किसी को अच्छे नहीं लगते कम से कम मेरे मरने पर कोई रोने वाला तो नहीं होगा

मेरे साथ बैठकर एक दिन वक्त भी रोया और कहने लगा कि बंदा तू ठीक है बस नसीब ही खराब है

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