कभी दिल करता है फिर बच्चा हो जाऊ, दीमाग से फिर थोड़ा कच्चा हो जाऊ, ए ज़िंदगी देदे मेरा वो बचपन मुझको सबकी निघाओ में सबसे अच्छा हो जाऊ

कितने ख़ूबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन उँगलीया जुड़ते ही दोस्ती होजाया करती थी

बेफ़िक्र हँसी और ख़ुशियों का ख़ज़ाना था , कितना खूबसूरत वो बचपन का ज़माना था

बचपन ही था जब हम छोटी छोटी बातों पर रोया करते थे आज गम के समन्दर हो फिर भी हम रो नहीं सकते

बचपन भी कमाल का था खेलते खेलते चाहे छत पर सोयें या जमीं पर आँख बिस्तर पर ही खुलती थी

रोने की वजह भी ना थी ना हसने का बहाना था क्यू हो गये हम इतने बड़े इससे अच्छा तो वो बचपन का ज़माना था

इतनी चाहत तो लाखों रुपए पाने की भी नहीं होती है, जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है

ईमान बेचकर बेईमानी ख़रीद ली बचपन बेचकर जवानी ख़रीदली ना वक़्त , ना ख़ुशी , ना सुकून सोचता हूँ ये कैसी जिंदगानी ख़रीद ली

ज़िंदगी की दौड़ में तजुर्बा कच्चा ही रह गया, हम सीख न पाए फ़रेब और दिल बच्चा ही रह गया

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